मातः दुर्गे ! सिंहवाहिनी सर्वशक्तिदायिनी मातः शिवप्रिये !
तेरी शक्ति के अंश से उद्भूत हम भारत के युवकगण तेरे मंदिर में बैठे हुए तुझ से प्रार्थना करते हैं ..... सुन हे मातः, तू भारत में आविर्भूत हो, प्रकाशमान हो|
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मातः दुर्गे ! अन्तस्थ रिपुओं का संहार करके बाहर के बाधाविघ्नों को निर्मूल कर| बलशाली, पराक्रमी, उन्नतचेता जाति, भारत के पवित्र काननों में, उर्वर खेतों में, गगनसहचर पर्वतों के तले, पूतसलिला नदियों के तीर पर एकता से, प्रेम से, सत्यशक्ति से, शिल्प से, साहित्य से, विक्रम से, ज्ञान से, श्रेष्ठ होकर निवास कर| मातृ-चरणों में यही प्रार्थना है, हे मातः प्रकट हो|
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मातः दुर्गे ! हमारे शरीर में योगबल द्वारा प्रवेश कर| हम होंगे तेरे यंत्र, तेरी अशुभ-विनाशी तलवारराशि, तेरे अज्ञानविनाशी प्रदीप| हे मातः, भारत के युवकों की इस आशा को पूर्ण कर| यंत्री बनकर यंत्र चला, अशुभ-हन्त्री होकर तलवार घुमा, ज्ञानदीप्तिप्रकाशिनी होकर हाथ में प्रदीप ले, प्रकाशमान हो|
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वीरमार्गप्रदर्शिनी आ ! अब हम तेरा विसर्जन नहीं करेंगे| हमारा सारा जीवन ही अनवच्छिन्न दुर्गापूजा हो, हमारे समस्त कार्य अविरत पवित्र, प्रेममय, शक्तिमय, मातृसेवाव्रत से युक्त हों| यही प्रार्थना है .....
हे मातः ! तू भारत में आविर्भूत हो, प्रकाशमान हो|
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= श्री अरविन्द =
सनातन संस्कृति संघ ट्रस्ट एक सामाजिक व आध्यात्मिक स्वयंसेवी संगठन हैं । हमारा मुख्य उद्देश्य स्वस्थ, समृद्ध, शक्तिशाली एवं संस्कारवान भारत का पुनर्निर्माण करना हैं ।
Wednesday 12 October 2016
हे मातः ! तू भारत में आविर्भूत हो, प्रकाशमान हो
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