Thursday 27 October 2016

मेरी पीड़ा .....

यों तो समष्टि की पीड़ा मेरी ही पीड़ा है, पर भारतवर्ष की पीड़ा विशेष रूप से मेरी पीड़ा है, क्योंकि धर्म, आध्यात्म और परमात्मा की सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारतवर्ष में ही हुई है| भारतवर्ष की उन्नति मेरी उन्नति है और मेरी उन्नति पूरे भारतवर्ष की उन्नति है| पूरा भारतवर्ष दुखी है तो मैं दुखी हूँ, और मैं सुखी हूँ तो पूरा भारतवर्ष सुखी है| मेरी चेतना का विस्तार ही पूरे भारतवर्ष की चेतना का विस्तार है| भारतवर्ष में धर्म और संस्कृति के ह्रास और पतन से मैं बहुत व्यथित हूँ, मेरी भावनाएँ बहुत अधिक आहत हैं, और यह मेरा ही पतन है|
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मैं यह लेख आप सब विभिन्न देहों में व्यक्त मेरी ही निजात्माओं के लिए लिख रहा हूँ| वैसे तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और सृष्टि आप ही हैं| सारे नक्षत्रमंडल, ग्रह , उपग्रह और विश्व आप की ही अभिव्यक्ति हैं| आप यह देह नहीं, सर्वव्यापी शाश्वत आत्मा हैं और परमात्मा के दिव्य अमृत पुत्र हैं|
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भारतवर्ष का आप पर एक विशेष ऋण है जो आप को चुकाना ही पडेगा क्योंकि यह भागवत चेतना आपको भारतवर्ष ने ही दी है|
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पूरी सृष्टि में इस पृथ्वी का एक विशिष्ट स्थान है और इस पृथ्वी पर भारतवर्ष का एक विशेष स्थान है क्योंकि भारत एक आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र है और परमात्मा की सर्वाधिक उपस्थिति भारतवर्ष में ही है| भारत वर्ष में भी आपका ही एक विशिष्ट स्थान है|
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सारी सृष्टि का भविष्य इस पृथ्वी पर है, इस पृथ्वी का भविष्य भारतवर्ष व सनातन हिन्दू धर्म पर है और भारतवर्ष व सनातन हिन्दू धर्म का भविष्य आप पर निर्भर है|
और भी स्पष्ट शब्दों में आप पर ही पूरी सृष्टि का भविष्य निर्भर है|
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हर प्राणी में परम सत्ता का अस्तित्व है, आवश्यकता है उसे पहिचानने व योग साधना द्वारा जागृत कर लोक कल्याण के मार्ग पर मोड़ देने की| राष्ट्र के उत्थान में समष्टि के उत्थान के सूत्र जुड़े हैं, और समष्टि के कल्याण से व्यक्ति के कल्याण के सूत्र जुड़े हैं| संसार से मुंह मोड़ना मोक्ष का मार्ग नहीं है| जो निर्वाण चाहते हैं, वे सांसारिक कर्मों को अवसर देते हैं कि वे मुक्ति का मार्ग बन जाएं| यह संसार भी एक चेतना है, सभी प्राणियों में ईश्वर का सूक्ष्म अस्तित्व है| मनुष्य की क्रियाओं का संचालन परमसत्ता से आदेशित है इसलिए वे भी आध्यात्मिक उपलब्धि का साधन बन सकती हैं जो योग साधना के द्वारा संभव है|
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संपूर्ण दर्शन का सार या निचोड़ है ..... योग साधना के माध्यम से, व्यक्ति अपना आंतरिक विकास करे, और अपने ही अंदर की मानसिक चेतना से ऐसी उच्चतर, आध्यात्मिक व अतिमानसिक चेतना को विकसित करे जो मानव प्रकृति को रूपांतरित कर उसे दिव्य बना दे| इसी में जीवन की पूर्णता है, इसी में भागवत चेतना से मिलन है|
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हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत
हे वन्दनीय भारत अभिनंदनीय भारत
जीवन सुमन चढ़ाकर आराधना करेंगे
तेरी जनम-जनम भर, हम वंदना करेंगे
हम अर्चना करेंगे ||१||
महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है
तू प्राण है हमारी जननी समान तू है
तेरे लिए जियेंगे,तेरे लिए मरेंगे
तेरे लिए जनम भर हम साधना करेंगे
हम अर्चना करेंगे ||२||
जिसका मुकुट हिमालय, जग जगमगा रहा है
सागर जिसे रतन की,अंजुली चढा रहा है
वह देश है हमारा,ललकार कर कहेंगे
इस देश के बिना हम,जीवित नहीं रहेंगे
हम अर्चना करेंगे ||३||
(संघ का एक गीत)
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ॐ तत्सत् | आप सब दिव्यात्माओं को नमन ! ॐ ॐ ॐ ||

-श्री कृपा शंकर बावलिया मुद्गल

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