Wednesday 30 November 2016

​क्या ईश्वर सिर्फ कल्पना हैं ? 

​क्या ईश्वर सिर्फ कल्पना है ? 

पहले हमें समझना होगा , ईश्वर क्या है? कैसा है  ? यथार्थ में ईश्वर एक शक्ति हैं, pure life energy हैं, pure living energy है जिसे हम consciousness कहते हैं science की भाषा में, और वेदांत की भाषा नें उसको ब्रह्म कहते हैं।

ईश्वर एक infinite , अनंत consiousness energy का फील्ड है, जैसे की मॅग्नेटिक field होता है । ईश्वर एक शक्ति हैं, energy हैं, जिस energy से सारा अपने आप कार्य कारण भाव से , cause - effect से विश्व भासीत होता है, उस original life energy को ईश्वर, परमात्मा, देव, भगवान कहा गया है यह बात साफ साफ समझनी चाहिए।

एक infinite original living energy field के gradual consolidification के कारण प्रकृति का , पंचभूतों का, matter का, पदार्थ का निर्माण होना भासीत होता है , जैसे आकाश में वायु होती है , वायु में वाष्प होता है, वाष्प सघन हो जाय तो बादल बनते है, बादल थंडा हो जाये तो जल बन जाता है, जल अधिक ठंडा हो जाये तो बर्फ बन जाता है ठीक इसी तरह उस

Consciousness के सघन होनेसे

Gradually पंचभूत बनते है , universal consciousness से आकाश बनता है, आकाश से वायु बनती है, वायु से अग्नि बनती है, जल बनता है, लावा बनता है, लावा ठंडा होने से फिर पृथ्वी तत्व बनता है,

वाष्प से बर्फ बनने जैसी यह self sustaining self maintaining घटना है , कार्य कारण भाव है, यहां न कोई मनुष्य स्वरूप व्यक्ति स्वरूप ईश्वर है, न कोई नियंत्रक है, न कोई controller है, जो भी है वह सिर्फ और सिर्फ universal consciousness है, जो मन का सूक्ष्मतम स्वरूप है। जिसे कोई दुर्लभ ही जानता है , अनुभव करता है, जो स्वयं ही universal हो जाता है, अनंत हो जाता है । चिरंतन हो जाता है ।...

जो लोग ईश्वर को परंपरा से मानते है वे ईश्वर का खोज नहीं करते ,बस मानते है बिना जाने और जो ईश्वर को नकारते है वे भी बिना जाने ही नकारते है, ये दोनों तरह के लोगो को ईश्वर कभी समझ में आता ही नहीं है, वे अपनी अपनी मान्यता में, सम्मोहन में, परंपरा में, अंधश्रद्धा में, अंध विश्वास में अटके हुये कुपमण्डूक लोग है ।

धर्म के आधारभूत मूल ग्रंथों का सही आकलन हो जाय तो समझ में आता है की सभी एकही मिलती जुलती बात कह रहे है , गलती तो समझने वालो की होती है जो 

मान्यता के कारण कुछ का कुछ समझ बैठते है जो एक सम्मोहन है।
सबका कहना एक है , सब उस शक्तिको निर्गुण ,निराकार कहते है ,उसका कोई जन्म नहीं, कोई मृत्यु नहीं, उसकी कोई माँ नहीं, उसका कोई पिता नहीं, वह न पैदा होता है न मरता है। सामान्य बुद्धि में यह बात पकड में नहीं आती , यह तो अनुभव की बात है , सूनने से, पढ लेने से, मानने से, विश्वास से वह शक्ति समझ में नहीं आती, उसके लिये आत्मज्ञानी महापुरूष से भेट आवश्यक है जो वास्तविक तत्व को समझा सकता है, जो व्यक्ति उस तत्व से एकरूपता अनुभव कर चुका है वही सही मार्गदर्शन कर सकता है, आज विश्व भर में फैले कथाकथित लाखों गुरूओं में से कोई दो- चार ही आत्मज्ञानी गुरू होगे, वाचाल तो बहुत होगे, चमत्कारी बहुत होगे, पर सच्चे आत्मज्ञानी महापुरूष दो- चार ही मिलेगे। भारत वर्ष में ऐसे व्यक्ति को संत, मुनि, ज्ञानी, सद्गुरू कहा जाता हैं।

इनमे कोई मतभेद नहीं है, मतभेद तो हमारे मान्यताओं में है , जो एक तरह की अंधता है दुसरा कुछ नहीं।

सृष्टी एक cause -effect है , जो एक mind - matter phenomenon है, जिसे कृष्ण परमात्मा कहते है , सारा विश्व एक ही वस्तु से बना है जिसे ईश्वर कहा गया है , इसलिये कहा जाता है की कण कण में ईश्वर है, कण कण में ब्रह्म हैं।

ईश्वर को मनुष्य रूप में मानने से संप्रदाय निर्मित हुये है, जो एक दुसरे से झगडते रहते है अज्ञान के कारण, अन्यथा झगडा होने का कोई कारण नहीं है, राजनीति करने वाले, कराने वाले लोग जो कुछ नहीं जानते, जिन्हें सिर्फ सत्ता चाहिये वे ही यहां दंगे फसाद करवाते है, युद्ध, आतंकवाद, नपुंसकता फैलाते है, उनसे सबको दूर रहना चाहिये ।

ईश्वर एक है , एक ओंकार सतनाम , एकं ब्रह्मं , एकोदेव महेश्वर,

पुराने ज्ञानी यह जानते थे इसलिये 6

वैदिक दर्शनों के साथ 6 अवैदिक दर्शन भी दर्शन शास्त्र कि शोभा बढ़ाते है, इतना ही नही सांख्य और वेदांत जैसे वैदिक दर्शन भी ईश्वर को मनुष्य स्वरूप, व्यक्ति स्वरूप नही मानते ।
💐🙏सनातन संस्कृति संघ🙏💐

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