Tuesday 22 November 2016

ब्रह्मा कौन है?

इस चित्रण में ब्रह्मा को एक इंसान के रूप बनाया गया था, या भारतीय प्राचीन ऋषियों द्वारा मानव जाति के लिए इस ब्रह्मांडीय चेतना की रचनात्मक योग्यता को समझने के लिए यह चित्र नियोजित किया गया था। हम इस चित्रण के प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करते हैं:
1. ब्रह्मा और ॐ - निरपेक्ष सर्वव्यापी सत्ता की रचनात्मक योग्यता (ब्रह्मा) का ओम - ॐ प्रतिनिधित्व करता है और स्पंदन की प्रथम दिव्य अभिव्यक्ति है।
2. ब्रह्मा के चार सिर - अर्थात सर्वव्यापी आत्मा की रचनात्मकता हर जगह यानि चारों दिशाओं में व्याप्त एवं प्रचलित है।
3. सरस्वती ब्रह्मा की पुत्री और पत्नी, दोनों हैं - अर्थात ज्ञान एवं प्रज्ञा रूपी पुत्री की उत्पत्ति ब्रह्मा से होती है और वह अविभाज्य हैं, अर्थात पत्नी भी है। व्यक्ति को ज्ञान के बिना ब्रह्मस्वरूप प्राप्त नहीं होता। प्रज्ञा प्रज्जवलित हुए बिना ब्रह्मा को धारण नही किया जा सकता।
4. ब्रह्मा का विष्णु की नाभि से जन्म - अर्थात सर्वव्यापी परमेश्वर की रचनात्मक योग्यता, हिरण्यगर्भ से प्रक्षेपित होती है।
5. ब्रह्मा सहत्रकमल पर बैठते हैं - अर्थात ब्रह्मज्ञान वहीं विराजमान होता है, जो ५ ज्ञानेन्द्रियों तथा ५ कर्मेन्द्रियों और उनमें से प्रत्येक के 100 उप कार्यों (10*100=1000) के परे पहुँच गया है और प्रज्ञा द्वारा ब्रह्मस्थिति को प्राप्त है।
6. ब्रह्मा द्वारा वेदों को थामना - अर्थात वैदिक ज्ञान अथवा आत्मिक ज्ञान का कभी नाश नही हो सकता क्योंकि ब्रह्म ही उसका सरंक्षक है।
7. श्वेत हंस ही ब्रह्मा का वाहन - दागरहित दैवीय शुद्धता ही ब्रह्मस्थिति का वाहन है।
8. ब्रह्मा की पूजा का प्रचलन न होना - मनुष्य के लिए पारब्रह्म परमेश्वर की उपलब्धि संभव है, अतः स्पंदनरहित परमात्मा की प्राप्ति को ही परम पूज्यनीय माना गया है, यद्यपि ब्रह्मा के गिनेचुने मन्दिर हैं।
9. ब्रह्मा के १० मानस पुत्र (प्रजापति) - अर्थात मानस स्पंदन की उत्पत्ति ॐ यानि प्रणव के उपरान्त होती है और यह मन अपनी १० मूलभूत आवृत्तियों से मनुष्य जाति का भौतिक सृष्टि में प्रादुर्भाव करता है।मनुष्य की उत्पत्ति वानर योनि के क्रमविकास से नही हुयी है।
10. ब्रह्मा का कमण्डल और उनका माला धारण करना - कमण्डल मानसिक सन्यास का प्रतीक है; और माला जप का प्रतीक है।
11. ब्रह्मा की दाढ़ी, किन्तु विष्णु और शिव की नही - अर्थार्त सृष्टिचक्र दीर्घायु तो है पर काल के परे नही, स्पदंनीय द्व्दं का एकात्म होना सुनिश्चित है। यही लीला है।
12. ब्रह्मा, ब्रह्म और ब्राह्मण - ब्रह्मा अर्थात सृष्टि रचयिता एवं निरतंर स्पदंनशील सृष्टिचक्र , ब्रह्म अर्थात परमात्मा रूपी आत्मा और ब्राह्मण मतलब जो सत्-चित्-आनन्द परमेश्वर के आनन्द स्वरूप में साधना द्वारा लीन हो मुक्तः बन गया हो।जो अपने को जन्म से ब्राम्हण मानते हैं, वह मिथ्या अहम् से ग्रस्त हैं। हर वो मनुष्य जो ब्रह्म पूर्णरूप से धारण कर चुका है, सर्वप्रेमी होता है।
अहम् ब्रह्मास्मि को चरितार्थ करना मनुष्य का अभीष्ट लक्ष्य है।

No comments:

Post a Comment