*ॐश्रीराम: श्रीकृष्ण: हरि:ॐ*
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"परिश्रम और पुरुषार्थ" के प्रतीक
हिन्दुस्थान' मे दो ही 'दिव्य राजा' हुए-
एक मर्यादा पुरुषोत्तम "श्रीरामचन्द्र"
और दूसरे जगद्गुरु "श्रीकृष्णचन्द्र" ।
"हिन्दुओँ" पर तो अब भी
इन्ही दोनो का राज चलता है ।
'राजनिष्ठा' तो इन्हीँ के प्रति सम्भव है ।
'भूमि' और 'द्रव्य' के ऊपर राज्य
करने वाले कोई ओर होँ, किन्तु
'हिन्दुओँ' के हृदय पर 'राज्य' करने
वाले तो ये दो ही "दिव्य स्वरूप" हैँ ॥
'श्रीमद्भागवत' मेँ लिखा है -
'जीवन' को सार्थक बनाने के लिए
चार बातोँ का ध्यान रखना
अति आवश्यक है ।
*सबसे प्रमुख है 'पारदर्शिता' !
अर्थात खुलेपन व ईमानदारी से समाज
को स्वच्छ एवं साफ-सुथरा रखना !!
सूचनाओँ को आसानी से प्राप्त कर
उत्तरदायित्व निभाना !!!
*दूसरा है जीवन मेँ 'परिश्रम' ।
परिश्रम से पुरुषार्थी होँगे और उससे
यश, कीर्ति, धन व शान्ति अर्जित करेँगे ।
*तीसरी बात है परिवार मेँ
'प्रेम' बनाए रखना ।
*चौथी बात निजी जीवन मेँ
'पवित्रता' बनाए रखना ।
*यह सभी है तो "परमात्मा"
बहुत जल्दी उतर कर आएगेँ !!
*"श्रीराम-कृष्ण" का चिन्तन जो जन करते,
'श्रीराम-कृष्ण' उनकी चिन्ता हरते ।
*जिस घर 'राम-कृष्ण'
भजन-कीर्तन के पहरे,
उस घर पाप का 'रावण-कंस'
एक पल ना ठहरे ॥
ॐजयश्रीरामॐ
"रघुपति राघव राजाराम !
पतित पावन सीताराम !!"
ॐश्रीकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्ॐ
"यदुपति यादव प्यारे 'श्याम'।
पतित पावन 'राधेश्याम'॥"
*धर्मेण हन्यते व्याधि धर्मेण हन्यते ग्रहः!
धर्मेण हन्यते शत्रु धर्मो विश्वस्य जगत: प्रतिष्ठा!
धर्मेयत्न: सदा कार्यो,धर्म एक: सुखावह:।
धर्मेण पाल्यते सर्वँ, त्रैलोक्यं सचराचरम्।
धर्मो रक्षति रक्षित:! यतो धर्मस्ततो जय:!!
"सर्वजन हिताय-बहुजन सुखाय"
"वसुधैव कुटुम्बकम्"
"यत्र विश्वंभवत्यैकनीड़म्"
॥स्वस्ति सर्वदा श्रीरस्तु॥
*ॐश्रीराम: श्रीकृष्ण: हरि:ॐ*
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ॐश्रीराम: कृष्ण: शरणम् मम:ॐ
॥श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
ॐहर हर महादेवॐ
"जय अम्बे"
॥हरि: ॐ तत्सत्॥
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