माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी जिसका दिव्य स्वरूप व्यक्ति के भीतर सात्विक वृत्तियों के अभिवर्दन को प्रेरित करता है। मां ब्रह्मचारिणी को सभी विधाओं का ज्ञाता माना जाता है। मां के इस रूप की आराधना से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम जैसे गुणों वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। मां के इस दिव्य स्वरूप का पूजन करने मात्र से ही भक्तों में आलस्य, अंहकार, लोभ, असत्य, स्वार्थपरता व ईर्ष्या जैसी दुष्प्रवृत्तियां दूर होती हैं।
मां के मंदिरों में नवरात्र के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी रूप की आराधना होगी। मां अपने भक्तों को जीवन की कठिन परिस्थतियों में भी आशा व विश्वास के साथ कर्तव्यपथ पर चलने की दिशा प्रदान करती है। आज के दिन माता का ध्यान ब्रह्मा के उस दिव्य चेतना का बोध कराता है जो हमे पथभ्रष्ट, चारित्रिक पतन व कुलषित जीवन से मुक्ति दिलाते हुए पवित्र जीवन जीने की कला सिखाती है। मां का यह स्वरूप समस्त शक्तियों को एकाग्र कर बुद्धि विवेक व धैर्य के साथ सफलता की राह पर बढऩे की सीख देता है।
ब्रहमचारिणी मां दुर्गा को द्वितीय शक्ति स्वरूप है। मां स्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बांए हाथ में कमण्डल लिए हुए सुशोभित है। पैराणिक ग्रंथों के अनुसार यह हिमालय की पुत्री थीं तथा नादर के उपदेश के बाद यह भगवान को पति के रूप में पाने के लिए इन्होंने कठोर तप किया। जिस कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए 1000 वर्षों तक सिर्फ फल खाकर ही रहीं तथा अगले 3000 वर्ष की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। इसी कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी व तपस्चारिणी कहा गया है। कठोर तप के बाद इनका विवाद भगवान शिव से हुआ। माता सदैव आनन्द मयी रहती हैं।
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