यज्ञ महात्म्य- यज्ञो वै प्रजापति: सहयज्ञा: प्रजा: सृष्टवा
पुरोवाच प्रजापति: ।
अनेन प्रसविष्यध्व मेष
वोदस्त्विष्ट कामधुक ।।
प्रजापिता ब्रह्मा ने
सृष्टि के प्रारंभ में यज्ञ सहित प्रजाओं की सृष्टि उत्पन्न कर उनसे कहा तुम लोग
यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो। और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित कामनाओं का
देने वाला हो।
यज्ञ का तात्पर्य है-
त्याग, बलिदान, शुभ कर्म। अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान् सुगंधित
पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण के लिए यज्ञ द्वारा वितरित किया जाता
है। वायु शोधन से सबको आरोग्यवर्धक साँस लेने का अवसर मिलता है। हवन हुए पदार्थ
वायुभूत होकर प्राणिमात्र को प्राप्त
होते हैं और उनके स्वास्थ्यवर्धन, रोग निवारण में सहायक होते
हैं। यज्ञ काल में उच्चरित वेद मंत्रों की पवित्र शब्द ध्वनि आकाश में व्याप्त होकर
लोगों के अंतःकरण को सात्विक एवं शुद्ध बनाती
है। इस प्रकार थोड़े ही खर्च एवं प्रयत्न से यज्ञकर्ताओं द्वारा संसार की बड़ी
सेवा बन पड़ती है।
अग्नौ प्रस्ताहुति: सम्यक आदित्यमुपतिष्ठते ।
आदित्या जायते
वृष्टि: वृष्ठे अन्नं तत: प्रजा ।।
विधिपूर्वक अग्नि में
छोडी हुई आहूती सूर्य को प्राप्त होती है। सूर्य से वृष्टि
तथा वृष्टि से अन्न और अन्न से प्रजायें उत्पन्न होती है। इस प्रकार वृष्टि, अन्न और प्रजाओं की उत्पत्ति का मूल कारण हवन ही है। अत:
यज्ञ करना परम आवश्यक है।
यज्ञ कर्म को मनुष्यों और
देवताओं के परस्पर कल्याण हेतु होना आवश्यक है क्यूंकि देवताओं को भोजन यज्ञ से
प्राप्त होता है और मनुष्य को सर्वाभीष्ट देने वाले देवता लोग भी तुम पर प्रसन्न
होकर तुम्हारा कल्याण करें।
यज्ञो हि भगवान विष्णु: भगवान सर्वयज्ञभुक।
भगवान विष्णु यज्ञ स्वरूप
यज्ञ भोक्ता व यज्ञ से ही प्रकट हुये है तथा यज्ञ में उनका ही यजन पूजन होता है।
यज्ञो वै श्रेष्ठतम् कर्म:।
यज्ञ श्रेष्ठतम् कर्म है।
यज्ञ मानव शक्ति के अपव्यय को रोकता है और श्रेष्ठ शक्ति देता है। अयं यज्ञो
भुवनष्य नाभि:। यज्ञ का फल इहलोकिक व पारलोकिक दोनों में प्राप्त होता है
अत: यज्ञ समस्त भुवनों का स्वामी है।
सर्व यज्ञ मयं जगत यज् धातो देवपूजा, संगतिकरण दानेषु ।
यजुर्वेद में यज्ञ के
बारे में कहा है : यज्ञ से अशुद्ध तत्वों का नाश होता है। यज्ञ से दिव्य वातावरण
की उत्पत्ति होती है। यज्ञ से आंतरिक शत्रुओं का नाश होता है। यज्ञ से असुरों का
नाश होता है। यज्ञ वीरता दायक एवं कायरता विनाशक है। यज्ञ देवताओं और मनुष्यों को
अपने प्रति किये गये जाने या अजाने पापों से बचाने वाला है। यज्ञ से आत्मबल की
वृद्धि होती है। यज्ञ से सद् बुद्धि की प्राप्ति होती है।
यज्ञ अनेक प्रकार के हुआ
करते है - चतुर्वेद पारायण यज्ञ, विष्णु यज्ञ, रूद्र यज्ञ, दुर्गा यज्ञ, लक्ष्मी यज्ञ, गायत्री यज्ञ, महामृत्युंजय यज्ञ आदि। यज्ञ देवत्व के पोषण के लिए तथा
अनिष्ठ नाश, आयु- आरोग्य की वृद्धि, भगवान की भक्ति, विश्व शान्ति, जन कल्याण, वातावरण की शुद्धि, तीनों ताप व पाप के क्षयार्थ एवं मुक्ति के लिये किये जाते
है।
प्रकृति का स्वभाव यज्ञ
परंपरा के अनुरूप है। सृष्टि का उद्भव विकास एवं अनन्त गतिविधियां सब यज्ञ में है।
हम जो कुछ भी परहित से प्रेरित होकर कार्य करते है, वह यज्ञ की
श्रेणी में आते है। जैसे पशु पक्षियों को
चारा डालना, सुपात्र प्राणियों को भोजन, वस्त्र एवम दक्षिणा
प्रदान करना, सनातन धर्म पर चलने वाले
निर्धन व्यक्तियों की कन्याओं का विवाह आयोजित करवाना, सनातन धर्म के गरीब मेधावी बच्चों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान
करना, बीमारी के अवसर पर
चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराना, अकस्मात आपदा आने पर जैसे
भूकंप, बाढ़ आदि कार्यों में सहायता करना, धर्म व
सत्प्रवृति के सम्वर्द्धन के लिए बाल संस्कार शालाओं, पुस्तकालयों, विद्याकुलों, गुरूकुलों की स्थापना कराना, गौशालाओं में चारा आदि का दान करना तथा सनातन धर्म की रक्षा व सम्वर्द्धन में लगे संगठनों को शारीरिक व आर्थिक सहयोग प्रदान करना। ये सब यज्ञ की श्रेणी में आते है।
राष्ट्र की समस्याओं के
समाधान, आध्यात्मिक, अधि दैविक, अधि भौतिक तीनों तापों की
निवृत्ति के लिये तथा संक्रामक रोगों की निवृत्ति, शारीरिक- मानसिक
रोगों का नाश, पापों व कष्टों की
निवृत्ति के लिए सनातन संस्कृति संघ (ट्रस्ट) इस प्रकार के यज्ञों का
आयोजन निरन्तर करता- कराता रहता है। इन आयोजनों से मनुष्य स्वास्थ्य, समृद्धि व परम पद को प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थानों पर सुन्दरकाण्ड,
संकीर्तन व
सत्संग आदि का आयोजन कराया जा
रहा है तथा परमात्मा की कृपा से
भविष्य में भी कराया जाता रहेगा।
सनातन संस्कृति संघ
(ट्रस्ट) संसार के
जनकल्याणार्थ, मानवीय, नैतिक,सांस्कृतिक,वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों को निजी, व्यवसायिक तथा सार्वजनिक जीवन में बढ़ावा देने के लिये कार्यरत है। इन सभी धार्मिक कार्यो में सहभागी बनकर तन- मन- धन से सहयोग करने वालों को आरोग्यता, विद्या, कीर्ति,पराक्रम, धन- धान्य और पुत्र-
पौत्रादि अनेक प्रकार के ऐश्वर्यो की प्राप्ति
होगी इसी आशा से-
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि
पश्यन्तु माकश्चिद दु:ख भाग् भवेत्
।।
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9837242731, 9149105534
वन्दे मातरम्
भारत
माता की जय
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