परमात्मा को पाना यानि आत्मसाक्षात्कार हमारा उच्चतम कर्तव्य है, अतः बिना किसी कामना के हमें परमात्मा को अपना सर्वश्रेष्ठ पूर्ण प्रेम देना चाहिए| कुछ पाने की किंचित भी कामना मन में न हो| यहाँ तो कुछ पाना ही नहीं है, सिर्फ देना देना यानि समर्पण ही समर्पण है|
कुछ भी पाने की कामना सच्चे प्रेम में नहीं होती| जहाँ कुछ पाने की अपेक्षा है वहाँ तो एक तरह का व्यापार हो गया| परमात्मा को प्राप्त होने के पश्चात तो सब कुछ प्राप्त हो जाता है, पर उसके लिए पहिले अपना सर्वस्व समर्पित करना पड़ता है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
-श्री कृपा शंकर बावलिया मुद्गल
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जयतु भारतम्
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